Thursday, October 7, 2010

शुभकामना कविता- आशा को नव परिभाषा दें

क्या हुआ यदि
बुझ गए
विश्वास के
जलते दीये ।
क्या हुआ यदि
लुट गए
उच्छ्वास के
सपने नए ।
क्या हुआ झंकृत हुए बिन
आस के
सब तार टूटे
सांस के विन्यास
बारम्बार छूटे ।
टूटे छूटे इन धागों से ही
आओ हम कुछ नया सीयें
आशा को नव परिभाषा दें
और जलाएं नए दीये ।

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