Wednesday, October 13, 2010

कविता - अधर मुस्कराए , नयन छलछलाए

अधर मुस्कराए
नयन छलछलाए
ह्रदय की कहानी
ह्रदय में दबाये
जिए जा रहा हूँ
तेरी याद में
अपनी नज़रें बिछाए ।
कभी तो रवानी
तेरी ज़ुल्फ़ की
तेरे माथे की बिंदिया से
कुछ तो कहेगी
तेरी मेरी बातों को
सपनों की रातों को
अश्को की थाली में जैसे नहाये
अधर मुस्कराए
नयन छंछ्लाये ।
चूड़ियाँ खंखानाएं
तेरे हाथ की तो
लगे मेरे ज़ेहन में
बरसों समाये
कोई शख्स दामन
बचाने की तरकीब
सोचे बनाये
अधर मुस्कराए
नयन छलछलाए ।
अब तो बगीचे की
अम्रायीआ हों
या ख्वाबों में बजती
शह्नाईआ हों
वीराना वीराना ये मंज़र तो देखो
बरसते ये ओलों के खंज़र तो देखो
बहुत हो गया अब तो
सपने रुलाये
अधर मुस्कराए
नयन छलछलाए
ह्रदय की कहानी
ह्रदय में दबाये
जिए जा रहा हूँ
तेरी याद में
अपनी नज़रें बिछाए ।

2 comments:

  1. आपके ब्लॉगकी कैचलाइन बहुत पसंद आई। लेकिन इस बड़ों की दुनिया में आने के इतने समय बाद भी आप अमराइयों और शहनाइयों के ख्वाब देख पाते हैं?

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