Tuesday, August 24, 2010

हिंदी कविता- बादल

बादल
आज बादल बरस रहे हैं
शुष्क धरा को सरस कर रहे
खोकर भी सर्वस्व चुप रहे
आज बादल बरस रहे हैं
जैसे कोई अश्रु बहाए
रिमझिम रिमझिम गीत सुनाये
उमड़ घुमड़ कर साज सजाये
आज बादल बरस रहे हैं
शुष्क धरा हो गयी मगन
उर्ध्व दिशा ले गयी अगन
और मेघ हो गए सघन
आज बादल बरस रहे हैं
धरा धरोहर धारण करते
रीते मन को स्वयं मनाते
जब कभी धरा हो गयी शुष्क
हम फिर से जल बर्सायेगे
आज बादल बरस रहे हैं।

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