Monday, August 23, 2010

त्वरित टिप्पणी - परसाई का जन्मदिन

२२ अगस्त को परसाई का जन्मदिन पूरे साहित्य जगत में मनाया गया। कहीं गोष्ठियां आयोजित की गयीं तो कहीं व्याख्यान। ख्यातनाम साहित्यकार हरिशंकर परसाई की कर्मभूमि जबलपुर रही है तो वहां के आयोजन विशेष मायने रखते हैं। परसाई द्वारा स्थापित संस्था विवेचना ने रानी दुर्गावती संग्रहालय की कला वीथिका में एक कार्यक्रम आयोजित किया। ज्ञान चतुर्वेदी का व्याख्यान होना था परन्तु अपरिहार्य कारण से वे नहीं आ सके। आये होते तो अच्छा हुआ होता । " परसाई के बाद व्यंग्य" विषय पर उन्हें बोलना था। साहित्यिक क्षेत्र में जबलपुर के गौरव ज्ञान रंजन ने परसाई को साहित्य और जीवन का निर्माता निरुपित किया । उन्होंने यह भी कहा कि अक्सर लोग गोष्ठियां एवं व्याख्यान आयोजित कर परसाई को भूल जाते हैं।
परसाई क़ी सृजनस्थली में भी उनके जन्मदिन पर ऐसे ही कुछ साहित्यिक कर्मकांड होते हैं। जबलपुर में व्यंग्य लेखन परिदृश्य पर क्या कुछ लिखा जा रहा है , इस पर चर्चा तक नहीं होती।ऐसे में विख्यात व्यंग्यशिल्पी ज्ञान चतुर्वेदी का न आ पाना अखरा । होना यह चाहिए कि व्यंग्य के क्षेत्र में नए लोग जो कुछ भी लिख रहे हैं ,उन्हें सामने लाकर उनका मूल्याङ्कन किया जाये। स्थापित हस्ताक्षरों तक ही सीमित होजाने से तो आगे शून्य ही दिखेगा। जबलपुर में भी कुछ लोग सार्थक व्यंग्य लिख रहे हैं। राकेश सोऽहं ऐसे ही एक सशक्त व्यंग्य हस्ताक्षर है। देश क़ी तमाम जानी पहचानी पत्रिकाओं में और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय अखबारों में उनके व्यंग्य नियमित रूप से प्रकाशित हो रहे हैं।आकाशवाणी से भी समय समय पर उनके व्यंग्य प्रसारित होते रहते हैं। मेरा मानना है कि परसाई के बाद उभरे शून्य को भरने में राकेश सोऽहं कुछ सीमा तक अपना योगदान करने में सक्षम हैं। संभवतः ज्ञान चतुर्वेदी नए व्यंग्यकारों के सृजन पर कुछ रोशनी डालते। जैसा कि कमला प्रसाद ने कहा है कि परसाई व्यंग्य को किसी साहित्यिक विधा के रूप में नहीं बल्कि एक स्पिरिट के रूप में देखते थे। वह स्पिरिट उनकी कर्मभूमि में मौजूद है। जरूरत है उसे महसूस करने की और नए लोगों को सामने लाने की। जैसा कि ज्ञान रंजन ने अपने एक लेख में कहा है कि सारे आकर्षणों को छोड़ कर परसाई ने एक छोटे से शहर जबलपुर को अपना स्थाई निवास बनाया और वहीँ से साहित्यिक भूमंडल को स्पर्श किया। जबलपुर के हर व्यक्ति को इस पर गर्व होना चाहिए। परसाई के साहित्यिक अवदान को राजनैतिक पक्षधरता के इतर विश्लेषित किया जाना चाहिए।

1 comment:

  1. परसाई के साहित्यिक अवदान को राजनैतिक पक्षधरता के इतर विश्लेषित किया जाना चाहिए..........आखिर क्यों। हम यह क्यों भूलना चाहते हैं कि परसाई जी की राजनैतिक पृष्ठभूमी ही उन्हें परसाई बनाती है। इसलिए उनकी राजनीति को पृथक रखकर उनके बारे में सोचा जाना सरासर अन्याय होगा।

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in
    http://vyangyalok.blogspot.com

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