शहर की चमक दमक के बीच रहते हुए अक्सर ऐसा महसूस करता रहा हूँ मानो अपने गाँव की टुटही पलानी में ही सांस लेता हूँ. अपने विलेज से ग्लोबल विलेज तक देशज परंपरा और अधुनातन प्रवृत्तियों के बीच भावप्रवण अभिव्यक्तियों की अंतर्यात्रा करने की चाह रखता हूँ. इस अक्षरयात्रा के माध्यम से गवईं माटी की सोंधी सुगंध के साथ विश्वयात्रा पर निकल रहा हूँ. श्रद्धेय हरिवंश राय बच्चन की इस पंक्ति - 'आँख में हो स्वर्ग लेकिन पाँव पृथ्वी पर टिके हों' की भावना लिए दुनिया के समस्त ब्लागरों को प्रणाम करता हूँ .
Saturday, July 24, 2010
बेरहम पत्तियां
बेरहम हैं पत्तियां डर जाती हैं मौसमी हवाओं से और छोड़ जाती हैं शाख को तनहा देकर चाँद दर्दीले निशान ।
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